ऐसा नहीं है कि ‘कैमरा कैसे काम करता है’ यह जानकर आप बहुत सुंदर तस्वीर खींचने लगेंंगे, लेकिन आप एक ‘जानकार’ फोटोग्राफर जरूर बनेंंगे!
आधुनिक कैमरे की बनावट बहुत जटिल तकनीक पर आधारित होती है और आधुनिक कैमरे अनेक सुविधाजनक फीचर्स से लैस होते हैं। लेकिन, कैमरे के अंदर तस्वीर बनने की प्रक्रिया फीजिक्स के बहुत ही सरल नियमों पर आधारित है। पिन-होल कैमरा और हमारी आंख जिन सिद्धांतों पर काम करते हैं वही कैमरे पर भी लागू होते हैं।
स्कूल के दिनों में पढ़ा हुआ फीजिक्स का लेंस वाला चैप्टर याद कीजिए। आपने फीजिक्स की प्रैक्टिकल कक्षाओं में खुद आजमाया भी होगा। उत्तल लेंस (convex lens) के सामने रखे ऑब्जेक्ट का लेंस की दूसरी ओर किस तरह उल्टी और वास्तविक प्रतिबिंब बनती थी जिसे पर्दे पर प्राप्त करना संभव था!
पिन-होल कैमरे में इसी तरह का प्रतिबिंब (इमेज) बिना किसी लेंस की सहायता के बनता है। आपने पिन-होल कैमरे का नाम जरूर सुना होगा। इसका चित्र देखा होगा या हो सकता है बचपन में खुद से बनाया भी होगा। कैमरे में फोटो बनने की प्रक्रिया बस इसी पिन-होल कैमरे के मूल सिद्धांत पर काम करती है।
पिन-होल कैमरा एक बंद बॉक्स होता है जिसकी एक दीवार में पिन या सुई के बराबर एक बारीक सा छेद होता है। बॉक्स के बाहर इस छेद (pin-hole) के सामने की वस्तु (object) से रिफ्लेक्ट होकर प्रकाश की किरणें (light rays) बॉक्स के अंदर प्रवेश करती हैं और बॉक्स की दूसरी तरफ की दीवार पर लगे सफेद कागज पर उस ऑब्जेक्ट का उल्टा चित्र (image) बनता है (इमेज में ऑब्जेक्ट का ऊपरी हिस्सा नीचे, दांएं का हिस्सा बाएं और बाएं का हिस्सा दाएं दिखता है)।
convex lens या पिन-होल कैमरे में बारीक छेद दोनों की एक ही भूमिका होती है। ऑब्जेक्ट से रिफ्लेक्ट होकर आने वाली किरणें converge होकर (यानी, एक बिंदु पर मिलकर या अभिसारित होकर) लेंस या पिन-होल कैमरे के बारीक छेद से गुजरती हैं और फिर diverge होकर (यानी, फैलकर या अपसारित होकर) सफेद पर्दे पर image बनाती हैं।
‘पिन-होल’ के इसी सिद्धांत पर 16वीं शताब्दी में camera obscura यानी डार्क चैंबर या ‘अंधेरा कमरा’ विकसित किया गया था (कैमरा (camera) लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मूल अर्थ कक्ष या कमरा होता था। है न मजेदार बात- ‘कैमरा’ यानी ‘कमरा’)। इसका इस्तेमाल चित्रकार लोग इमेज ट्रेसिंग के लिए करते थे।
यह ‘कैमरा ऑब्सक्योरा’ एक बड़े कमरे की तरह होता था जिसके छेद पर कॉनकेव लेंस लगा होता था। इसके बाहर खड़े मॉडल या सब्जेक्ट की तस्वीर अंधेरे कमरे के अंदर की दीवार पर बनती थी जिसे कमरे के अंदर मौजूद लोग कागज पर ट्रेस कर लेते थे। जिस तरह आदि मानव (early man) से विकसित होकर आज का मनुष्य बना उसी तरह इस camera obscura से विकसित होकर वास्तविक कैमरा बना।
पिन-होल कैमरा या कैमरा ऑब्सक्योरा में पर्दे पर जो चित्र बनता था वह अस्थायी होता था। जब तक बाहर सब्जेक्ट मौजूद है तभी तक अंदर यह चित्र रहता था। यह चित्र स्थायी हो जाए इसी आवश्यकता से वास्तविक कैमरे का जन्म हुआ।
1816 में फ्रांस के Joseph Nicéphore Niépce (जोसफ निसेफर निप्स) ने कैमरा ऑब्सक्योरा में बनने वाले चित्र के लिए साधारण कागज की बजाए सिल्वर क्लोराइड (AgCl) की लेप चढ़े कागज का इस्तेमाल किया। वह चित्र सिल्वर क्लोराइड लगे कागज पर स्थायी रूप से अंकित हुआ और दुनिया पहली बार वास्तविक कैमरे के अंदर तस्वीर बनने के प्रॉसेस से परिचित हुई! सिल्वर क्लोराइड (AgCl) एक फोटो सेंसिटिव केमिकल है जिसपर रोशनी की किरण पड़ने से एक खास तरीके से फोटो-केमिकल रिएक्शन होता है, जिसकी मदद से तस्वीर बनती है।
बस यही है कैमरे के अंदर तस्वीर बनने की आसान सी प्रक्रिया- ‘ऑब्जेक्ट से रिफ्लेक्ट होकर आने वाली किरणों को उस फोटो सेंसिटिव मीडियम पर फोकस किया जाए जो प्रकाश को स्थायी चित्र में कनवर्ट कर दे’।
विकसित होकर सिल्वर क्लोराइड की लेप वाले कागज ने फिल्म रोल (नेगेटिव) की रूप ले लिया। फोटो सेंसिटिव केमिकल मूल रूप से वही रहा बस base के रूप में कागज की जगह प्लास्टिक फिल्म का इस्तेमाल हुआ। समय के साथ कैमरे का आकार बदलता गया और नए फीचर्स जुड़ते गए। इमेज क्वालिटी, फोकस तकनीक और कैमरा ऑपरेट करने के तौर-तरीके बदलते गए। ऑब्जेक्ट से टकराकर आने वाली प्रकाश किरणों को कैमरे के अंदर नेगेटिव फिल्म पर फोकस करने के लिए लेंस का इस्तेमाल हुआ।
बेसिकली, कैमरा आज भी वही है, कैमरे के अंदर तस्वीर बनने का मूल सिद्धांत वही है। फर्क यह हुआ कि इमेज फॉमेशन के लिए फिल्म रोल की जगह आज इलेक्ट्रॉनिक इमेज सेंसर ने ले लिया है।
फोकस
कैमरे के अंदर तस्वीर बनने की पूरी प्रक्रिया में इमेज फॉर्मेशन मीडियम के अलावा एक और चीज अनिवार्य होती है। वह है वस्तु से रिफ्लेक्ट होकर आने वाली किरणों का इस इमेज फॉर्मेशन मीडियम की सतह पर फोकस होना ताकि इमेज क्लियर और शार्प बने। इसके लिए सबसे आसान तरीका है फोटो ली जाने वस्तु और कैमरे के बीच की दूरी को एडजस्ट करना। इसलिए लिए चाहें तो कैमरे को अथवा सब्जेक्ट को आगे-पीछे खिसकाइए। पिन-होल कैमरे या कैमरा ऑब्सक्योरा में ऐसा ही किया जाता था।
लेकिन जब कैमरा अपने व्यावहारिक रूप में आया तो उसमें इस काम के लिए लेंस का इस्तेमाल किया गया। कैमरे का लेंस दरअसल कई सिंपल लेंसों से मिलकर बना एक कंपाउंड (संयुक्त) सिस्टम होता है। इन लेंसों से बीच की दूरी को बदलकर कैमरे के फिल्म या इमेज सेंसर के ऊपर लाइट को फोकस किया जाता है। आज भी जो पुराने बेसिक लेंस इस्तेमाल किए जाते हैं उनमें लेंस पर लगे रिंग को घुमाकर मैनुअली (हाथ से) फोकस किया जाता है।
लेंस का काम है ऑब्जेक्ट से उसकी ओर आने वाले वाली सभी किरणों को समेट कर फिल्म नेगेटिव या इमेज सेंसर की सतह पर फोकस करना।
लेंस अगर फिल्म नेगेटिव या इमेज सेंसर के पहले या उसके पीछे फोकस कर दे तो फोटो धुंधली या blur बनती है। शार्प और क्लियर फोटो के लिए लेंस सारी लाइट को बिल्कुल फिल्म नेगेटिव या इमेज सेंसर की सतह पर ही फोकस करे। यही कारण है कि कैमरे से ली गई तस्वीर की शार्पनेस और क्लैरिटी सबसे अधिक कैमरे की फोकस एक्युरेसी के ऊपर निर्भर करती हैं।
तो, आपने जाना कि कैमरा कैसे काम करता है, और यह थी कैमरे में फोटो बनने की बेसिक प्रक्रिया जिसके आधार पर कैमरे के अंदर तस्वीर बनती है। आज आधुनिक कैमरे में बेहद जटिल तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उनसे फोटो फॉर्मेशन के बेसिक सिद्धांत नहीं बदले हैं। इन आधुनिक तकनीकों ने केवल फोटो खींचने की मेकेनिकल प्रॉसेस और इमेज की फोटो क्वालिटी को निखारा है।
sahil
this side is wonderfull
Sumit
हिंदी भाषा में कैमरे के बसिक से लेकर ऐडवांस्ड तक की इतनी जानकारी एक जगह पर और कहीं नहीं दिखती। हिंदी भाषी नव-छायाकारों के लिए अद्भुत पोर्टल!!