Low Light Photography (कम रोशनी में की जाने वाली फोटोग्राफी) एक चुनौती भरा काम है। अच्छी फोटोग्राफी के लिए भरपूर रोशनी की जरूरत होती है। दिन की रोशनी में या स्टूडियो की कृत्रिम लाइटिंग के साथ अच्छे एक्सपोजर वाली फोटो खींचना आसान होता है। लेकिन, समस्या तब आती है जब फोटो खींचने के लिहाज से रोशनी पर्याप्त न हो।
फोटोग्राफी के लिए कम रोशनी की समस्या आम तौर पर शाम को सूरज ढलने के बाद और सुबह सूरज निकलने से पहले होती है। लेकिन दिन के समय भी ऐसे सिचुएशन आ सकते हैं जहां फोटोग्राफी के लिहाज से लाइट कम हो। उदाहरण के लिए जब दिन के समय इनडोर शूटिंग करनी पड़े या घने पेड़ों से घिरी जगह में फोटोग्राफी करनी हो। यह आलेख- ‘कम रोशनी में फोटोग्राफी (low light photography) कैसे करें? ’ कम लाइट वाली स्थितियों में या रात के समय फोटोग्राफी करने में आपकी मदद करेगा।
कम लाइट में या रात में फोटो कैसे खीचें : low light photography के 8 उपयोगी टिप्स
कम रोशनी में फोटोग्राफी- low light photography in HIndi
1.आईएसओ बढ़ाएं:
डिजिटल कैमरे में आईएसओ सेट करने की सुविधा होती है जिसकी मदद से आप सीन के एक्सपोजर को बढ़ा या घटा सकते हैं। आईएसओ बढ़ाने से डिजिटल कैमरे के फोटो सेंसर की लाइट सेंसिटिविटी बढ़ जाती है। इससे होता यह है कि वास्तविक रूप से लाइट बढ़ाए बिना ही फोटो थोड़ी अधिक ब्राइट हो जाती है। लेकिन, इसके लिए फोटो क्वालिटी से थोड़ा समझौता करना पड़ता है क्योंकि higher ISO पर फोटो में नॉइज दिखने लगते हैं। लेकिन यह कोई बहुत निराश होने वाली बात नहीं है। आधुनिक डीएसएलआर कैमरे ऊंचे आईएसओ पर भी नॉइज को बहुत हद तक नियंत्रित कर लेते हैं। और साथ ही, आप पोस्ट प्रॉसेसिंग के दौरान फोटो में नॉइज कम कर सकते हैं।
कम रोशनी में फोटो लेने के लिए आईएसओ बढ़ाना सबसे आसान और कारगर उपाय है। आईएसओ बढ़ाकर आप शटरस्पीड को ऑप्टिमम लेवल पर रख सकते हैं ताकि सीन में अनावश्यक मोशन ब्लर पैदा न हो। सीन में अगर मूविंग ऑब्जेक्ट्स नहीं हैं और आपका कैमरा स्थिर है (ट्राइपॉड या अन्य तरीके से) तो आप बिना आईएसओ बढ़ाए केवल शटरस्पीड घटाकर अच्छा एक्सपोजर प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन, प्रैक्टिकल लाइफ में ऐसे स्थिर (still) सीन कम ही होते हैं।
2.फ्लैश का इस्तेमाल:
अगर कैमरे में फ्लैश की सुविधा है तो इसका इस्तेमाल लो लाइट फोटोग्राफी का सबसे आसान उपाय है। लेकिन फ्लैश के साथ दो समस्याएं आती हैं-
(i) फ्लैश की तेज लाइट आपके सीन के मूड और इफेक्ट को बिगाड़ सकती है। नजदीक का ऑब्जेक्ट भद्दे तरीके से अधिक एक्सपोज्ड हो सकता है।
(ii) यह आपके candid moment को खराब कर सकती है। यानी, फ्लैश की रोशनी आपके सब्जेक्ट को असहज कर सकती है, खासकर यदि आप लोगों के कैन्डिड फोटो लेते हैं या आप वाइल्डलाइफ शूटर हैं या जीव-जंतुओं के फोटो लेते हैं तो।
3.फास्ट लेंस का उपयोग:
फास्ट लेंस वे लेंस होते हैं जिनका f-नंबर बहुत छोटा होता है, जैसे- f/1.4, f/1.8, f/2.8 etc. इस तरह के छोटे f-नंबर वाले लेंस के अपर्चर (लेंस का छिद्र) बड़े होते हैं जिससे होकर कैमरे के फोटो-सेंसर तक अधिक मात्रा में लाइट पहुंच पाती है।
आप समझ गए होंगे कि अपनी इस खूबी के कारण फास्ट लेंस कम रोशनी वाले सिचुएशन के लिए कितना उपयोगी होते हैं। फास्ट लेंस थोड़े महंगे हो सकते हैं और ये फिक्स्ड फोकल लेंथ वाले प्राइम लेंस होते हैं यानी, जिन्हें आप जूम नहीं कर सकते।
4.Slow शटर-स्पीड:
शटर-स्पीड धीमी रखकर फोटो के लिए अधिक एक्सपोजर पाया जा सकता है। डिजिटल कैमरे में ऐसा करने की सुविधा होती है। स्थिर (still) सीन के लिए स्लो शटर स्पीड उपयोगी है। लेकिन इसमें आपको अपना कैमरा भी स्थिर रखना होगा, जिसके लिए आपको tripod का सहारा लेना होगा। बिल्डिंग के एक्स्टीरियर या इंटीरियर, रात में शहर की टिमटिमाती रोशनी, तारों भरा आकाश, चांद, सूर्यास्त और सूर्योदय के वक्त के लैंडस्केप ऐसे उदाहरण हैं जिनके लिए आप ट्राइपॉड की मदद लेकर स्लो शटर-स्पीड फोटोग्राफी कर सकते हैं।
लेकिन स्लो शटर-स्पीड फोटोग्राफी हर जगह कामयाब नहीं होती। यदि आप तस्वीर में जानबूझकर मोशन ब्लर नहीं डालना चाहते तो आप शटर-स्पीड को एक सीमा से कम नहीं रख सकते। फिर भी, सीन के हिसाब से आपको शटर-स्पीड minimum रखना होगा।
5.tripod का सहारा:
जैसा कि आपने ऊपर देखा ट्राइपॉड की मदद से शटर-स्पीड को बेहद स्लो रखकर फोटो ली जा सकती है। ट्राइपॉड कैमरे को हिलने (camera shake) से बचाता है और इसलिए आप मनचाहे लेवल तक शटर-स्पीड को स्लो रख सकते हैं। स्लो शटर-स्पीड की स्थिति में ट्राइपॉड कैमरा शेक से तो बचाता है, लेकिन सीन में होने वाला मूवमेंट शटर-स्पीड के स्लो होने की वजह से ‘मोशन ब्लर’ (motion blur) के रूप में दिखता है। इसलिए कम रोशनी में लैंडस्केप फोटोग्राफी और स्टिल लाइफ फोटोग्राफी के लिए ट्राइपॉड सबसे उपयुक्त टूल है।
6.बड़े सेंसर वाला कैमरा:
डिजिटल कैमरे में फोटो निर्माण की जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक ‘इमेज सेंसर’ (Image Sensor) की होती है। यह इमेज सेंसर ही है जो सब्जेक्ट से रिफ्लेक्ट होकर आने वाली लाइट को सेंस करता है। और, लाइट के जरिए सेंसर को जो इलेक्ट्रॉनिक इनफॉर्मेशन या डीटेल्स मिलती है उसके अनुसार कैमरे के अंदर डिजिटल स्वरूप में फोटो का निर्माण होता है। ‘फोटो सेंसर’ का आकार जितना बड़ा होता है कैमरे को फोटो फॉर्मेशन के लिए उतना ही अधिक डीटेल्स प्राप्त होता है। बड़े आकार के सेंसर की लाइट सेंस करने की क्षमता भी अधिक होती है।
तो जाहिर सी बात है, यदि बड़े सेंसर वाले कैमरे का इस्तेमाल किया जाए तो कम रोशने में भी फोटो में अच्छे डीटेल्स आएंगे। साथ ही, बड़े सेंसर वाले कैमरे में नॉइज बढ़ाए बिना भी आईएसओ को अधिक बढ़ाने की सुविधा मिलती है। यानी, हम बड़े सेंसर की मदद से अधिक higher ISO का उपयोग कर सकते हैं और वह भी फोटो में नॉइज की चिंता किए बिना!
किसी भी सामान्य पॉइंट एंड शूट कैमरा या डिजिटल पॉकेट कैमरे की तुलना में DSLR या Mirror-less Camera का सेंसर बड़ा होता है। इसलिए ‘लो लाइट’ फोटोग्राफी के लिहाज से ऐसे कैमरे बेहद उपयोगी होते हैं।
DSLR में भी यदि हम सामान्य Dx फॉर्मेट की बजाए Fx फॉर्मेट वाले बड़े डीएसएलआर (Full Frame DSLR) का उपयोग करें तो बिना फ्लैश के ही परिवेश में उपलब्ध लाइट (ambient light) की मदद से शानदार फोटो ले सकते हैं। हां, Fx फॉर्मेट Full Frame DSLR के लिए कीमत अधिक चुकानी पड़ती है, लेकिन काम रोशनी में फोटो के लिए इसका कोई जोड़ नहीं।
7.RAW मोड में शूट करें:
प्रायः किसी भी डिजिटल कैमरे से हम jpeg मोड में शूट करते हैं। इसका अर्थ यह होता है कि फोटोग्राफर द्वारा सेट किए गए वैल्यूज के अनुसार डिजिटल कैमरा फोटो प्रॉसेसिंग कर देता है और हमें पूरी तरह से तैयार फोटो मिलती है। यानी jpeg मोड में इन-कैमरा फोटो प्रॉसेसिंग होती है जो हमारे द्वारा सेट किए गए व्हाइट बैलेंस, कलर सैचुरेशन, ब्राइटनेस, कंट्रास्ट, शार्पनेस जैसे पैरामीटर्स के आधार पर होती है। jpeg में हमें बनी-बनाई रेडीमेट डिजिटल फोटो तो मिल जाती है लेकिन इसमें फोटो का डीटेल लॉस होता है।
सभी डीएसएलआर, मिररलेस और एडवांस्ड पॉइंट&शूट कैमरों में RAW मोड दिया गया होता। RAW मोड में हम कैमरे के अंदर कोई पिक्चर पैरामीटर सेट नहीं करते। इसमें इन-कैमरा फोटो प्रॉसेसिंग नहीं होती। कैमरे का सेंसर केवल उतना ही दर्ज करता है जितना सीन में होता है। फोटो में फुल डीटेल्स और शार्पनेस सुरक्षित रहते हैं।
वैसे तो jpeg फोटो को थोड़ा बहुत पोस्ट प्रॉसेसिंग कर निखारा जा सकता है लेकिन RAW इमेज को पोस्ट प्रॉसेसिंग में मनचाहे तरीके से सुधारने की गुंजाइश बहुत रहती है। हां, लेकिन इस मोड में लिए गए फोटो को सॉफ्टवेयर के जरिए यूजेबल jpeg फॉर्मेट में बदलने के लिए कंप्यूटर पर आपको थोड़ा ज्यादा समय और मिहनत खर्च करना पड़ेगा।
तो, लाइट फोटोग्राफी के लिए RAW मोड में शूट करना अच्छा होता है। यह इसलिए क्योंकि,
(i) इसमें फोटो एक्सपोजर को after camera कुछ हद तक बढ़ाया जा सकता है,
(ii) high ISO फोटो के नॉइज को पोस्ट प्रॉसेसिंग में आसानी से कम किया जा सकता है,
और यह सबकुछ फोटो से न्यूनतम डीटेल लॉस के साथ फोटो के शार्पनेस को सुरक्षित रखते हुए!
8.कैमरा सेटिंग्स:
Low Light Photography में यदि आप RAW शूट करते हैं तो आपको कैमरे में व्हाइट बैलेंस, कलर सैचुरेशन, कंट्रास्ट, ब्राइटनेस, शार्पनेस, जैसी सेटिंग्स की चिंता नहीं करनी पड़ती है। लेकिन, यदि आप jpeg शूट करते हैं (और हममें से ज्यादार यही करते हैं) तो आपको फोटो क्लिक करने से पहले कैमरे के अंदर इन पैरामीटर्स के सही वैल्यू सेट करने होंगे।
जब आप कम रोशनी में फोटोग्राफी करते हैं तो आपको इन कैमरा फोटो प्रॉसेसिंग को मिनिमम लेवल पर रखना सही होता है। इसके लिए आपको कलर सैचुरेशन, कंट्रास्ट, ब्राइटनेस, शार्पनेस जैसे पैरामीटर्स के वैल्यू न्यूनतम (minimal) रखना चाहिए। इससे फोटो में कलर आर्टिफैक्ट और नॉइज को कम करने में मदद मिलेगी।
Low light फोटोग्राफी यदि ब्लैक एंड व्हाइट फॉर्म में की जाए तो फोटो में कलात्मकता और क्लासिक लुक आता है।
9.अपर्चर प्रायोरिटी (A) मोड में शूट करें:
यदि आप अब तक ऑटो मोड इस्तेमाल करते हैं तो हमारी सलाह है आप अपर्चर प्रायोरिटी (A) मोड में शूटिंग करें। इस मोड में आपको बस अपने लेंस का minimum अपर्चर सेट कर लेना है और ISO उतना अधिकतम रखना है जितने पर अपका कैमरा noise को यूजेबल लेवल तक हैंडल कर पाए। लाइट के हिसाब से शटर स्पीट कैमरा खुद तय कर लेगा। और यह हमेशा ध्यान रखें कि लो लाइट सिचुएशन या रात के वक्त अच्छी फोटो पाने के लिए (यदि आप RAW शूट नहीं करते हैं तो) फोटो का कलर सैचुरेशन, कंट्रास्ट, शार्पनेस etc. मिनिमम लेवल पर रखें। जैसा कि ऊपर बताया गया है इससे फोटो में कलर आर्टिफैक्ट और नॉइज कम होगा और फोटो साफसुथरी दिखेगी।
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