मिररलेस कैमरा (Mirrorless Camera) का परिचय : What is mirrorless camera in hindi?
तकनीकी रूप से कोई भी कैमरा जिसमें मिरर का इस्तेमाल नहीं किया गया हो मिररलेस कैमरा (Mirrorless Camera) कहलाता है। कई दशक पहले भी ऐसे कैमरे होते थे जिनमें मिरर नहीं था। लेकिन, आज जिन मिररलेस कैमरों की चर्चा होती है वे दरअसल Mirrorless Interchangeable-Lens Camera (MILC) हैं। ऐसा पहला इंटरचेंजेबल मिररलेस कैमरा Epson R-D1 2004 में बाजार आया था।
आधुनिक मिररलेस कैमरे SLR/DSLR की तरह ही interchangeable lens camera होते हैं। यानी, इनमें भी आप अपनी जरूरत अनुसार अलग-अलग लेंस फिट कर फोटो खींच सकते हैं। लेकिन, इन कैमरों में मिरर का इस्तेमाल नहीं होने से इनका नाम मिररलेस पड़ा।
तो, जैसा कि नाम से स्पष्ट है मिररलेस कैमरा (Mirrorless Camera) में मिरर का इस्तेमाल नहीं किया जाता। अब प्रश्न उठता है क्या अन्य कैमरों में मिरर का इस्तेमाल होता है? यदि हां, तो क्यों होता है और इसका फंक्शन क्या है? आइए, मिररलेस कैमरा को जानने से पहले मिरर वाले कैमरे में इसकी क्या भूमिका होती है यह जान लेते हैं।
Mirror (दर्पण) वाले कैमरा और कैमरे में उसकी भूमिका
दरअसल, SLR/DSLR कैमरों में जो view finder होता है (कैमरे का वह पार्ट जिसमें आंख लगाकर हम कैमरे से बाहर के दृश्य देखते हैं) वह एक mirror (दर्पण) की मदद से हमें कैमरे से बाहर का दृश्य दिखाता है। SLR/DSLR में यह मिरर कैमरे के लेंस और सेंसर के बीच में 45 डिग्री के एंगल पर सेट रहता है। जब हम व्यू फाइंडर में देखते हैं तो बाहर के दृश्य से रिफ्लेक्ट होकर आने वाली प्रकाश की किरणें इस मिरर से टकराती हैं और रिफ्लेक्ट होकर व्यू फाइंडर में पहुंचती हैं और इस तरह व्यू फाइंडर पर लगी हमारी आंख बाहर के दृश्य देख पाती है।
यह सारी प्रक्रिया लेंस और reflex mirror (इसे reflex mirror इसलिए कहते हैं क्योंकि यह एक झटके से साथ अपनी जगह से उठकर फिर वापस उसी जगह पर आ जाता है) की मदद से होती है। इसमें कुछ भी इलेक्ट्रॉनिक नहीं होता। यही कारण है कि जब डीएसएलआर कैमरा ऑफ रहता है तब भी हमें व्यू फाइंडर से बाहर की चीजें दिखाई पड़ती हैं। SLR के डिजिटल बन जाने से पहले जो सामान्य नेगेटवि फिल्म वाले SLR कैमरे होते थे उनमें भी व्यू फाइंडर से दिखाई पड़ने की प्रक्रिया यही थी। ऐसे व्यू फाइंडर को Optical View Finder (OVF) कहते हैं।
जब हम शटर बटर दबाते हैं तो यह मिरर ऊपर उठ कर लेंस से आने वाली किरणों को कैमरे के सेंसर या नेगेटिव फिल्म तक जाने के लिए रास्ता देता है। शटर रिलीज होने के बाद फिर से वापस अपनी जगह पर लौट जाता है।
मिरर की वजह से SLR/DSLR कैमरों का आकार और वजन अधिक होता है। कैमरे के लेंस और सेंसर के बीच मिरर होने के कारण flange और सेंसर (या नेगेटिव फिल्म) के बीच की दूरी बढ़ जाती है (flange कैमरे का वह गोल हिस्सा होता है जहां लेंस को कैमरे से जोड़ा जाता है)।
मिररलेस कैमरा (Mirrorless Camera) के फायदे : advantages of Mirrorless Camera in Hindi
आप बस यूं समझ लें कि यदि SLR कैमरे से मिरर हटा लिया जाए तो हो गया मिररलेस कैमरा (Mirrorless Camera) यानी Mirrorless Interchangeable Lens Camera (MILC)।
अब सवाल है, क्या मिरर नहीं होने से मिररलेस कैमरों में व्यू फाइंडर नहीं होता? नहीं, ऐसा नहीं है। मिररलेस कैमरे में भी व्यू फाइंडर होता है, लेकिन वह Electronic View Finder (EVF) होता है। मिररलेस कैमरे में लेंस और सेंसर के बीच mirror नहीं होने से लाइट हर वक्त सेंसर तक पहुंचता रहता है। कैमरा ऑन होने पर सेंसर को मिले इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स के आधार पर कैमरे के इलेक्ट्रॉनिक व्यू फाइंडर में सामने का दृश्य दिखाई पड़ता है।
Interchangeable Lens वाले मिररलेस कैमरा 17mm x 13mm के सेंसर साइज लेकर 36mm x 24mm के फुल फ्रेम सेंसर साइज तक होते हैं। SLR/DSLR कैमरे की तरह इनमें भी आप लेंस चेंज कर सकते हैं। व्यू फाइंडर इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल होता है (जबकि SLR/DSLR कैमरों में ऑप्टिकल व्यू फाइंडर होते हैं)। इनकी इमेज क्वालिटी आधुनिक DSLR जैसी ही बेहतरीन होती है।
मिररलेस कैमरा पूरी तरह डिजिटल होता है। डीएसएलआर की तुलना में ये कैमरे वजन में हलके और आकार छोटे (compact) होते हैं। मिरर उठाने-गिराने के झंझट से मुक्त होने की वजह से मिररलेस कैमरे की frame rate (1 सेकेंड में खींची जाने वाली फोटो की संख्या) भी अधिक रखना संभव होता है। डीएसएलआर कैमरों की तुलना में इनमें focus point की संख्या भी अधिक होती हैं।
मिररलेस कैमरे की कमजोरियां : disadvantages of Mirrorless Camera in Hindi
इन सारी खूबियों के बावजूद मिररलेस कैमरा (Mirrorless Camera) की चार प्रमुख कमजोरियां सामने आती हैं जिनकी वजह से आधुनिक डीएसएलआर उनकी तुलना में अधिक लोकप्रिय हैं-
1.Continuous Auto-focus या Suject Tracking के मामले में यह डीएसएलआर से कमजोर साबित होता है। डीएसएलआर कैमरे का यह फीचर तेज गतिमान सब्जेक्ट को कैप्चर करने में बहुत मायने रखता है।
2.मिररलेस कैमरे की बैट्री लाइफ कम होती है। ज्यादातर मिररलेस कैमरे की फुल चार्ज्ड बैट्री से 300 से अधिक शॉट्स नहीं लिए जा सकते, जबकि डीएसएलआर कैमरों में 800 से अधिक शॉट्स आराम से लिए जा सकते हैं।
3.बाजार में नया होने की वजह से कीमत अधिक है।
4.मिररलेस कैमरे के लेंसों की संख्या सीमित है। Flange साइज अलग होने से इसके लेंस अलग होते हैं। हालांकि, एक ही कंपनी के वर्तमान डीएसएलआर के लेंस उनमें फिट हो सकते हैं लेकिन इसके लिए अलग से एडाप्टर लगाने का झंझट रहता है।
मिररलेस कैमरे की उपयोगिता और भविष्य : Usage and future of Mirrorless Camera in Hindi
मिररलेस कैमरों का सबसे बड़ा आकर्षण उनका compact होना और वजन में हलका होना है। इसलिए ऊपर मेंशन की गई कमजोरियों के बावजूद मिररलेस कैमरे उन सामान्य और गैर-पेशेवर फोटो प्रेमियों में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं जिनकी सामान्य फोटोग्राफिक जरूरतें होती हैं। ट्रैवल, लैंडस्केप, घरेलू आयोजन, मानव पोर्ट्रेट और स्ट्रीट फोटोग्राफी आदि के लिए ये कैमरे मुफीद हैं।
मिररलेस टेक्नोलॉजी तेजी से विकसित हो रही है और उनकी कमजोरियों को सुधारा जा रहा है। आश्चर्य नहीं कि भविष्य में मिररलेस कैमरे (Mirrorless Camera) की मांग सबसे अधिक हो जाए। एक आंकड़े के मुताबिक बाजार में बिके कुल कैमरों में मिररलेस की हिस्सेदारी 2013 में महज 5% थी जो 2015 में बढ़कर 26% हो गई थी।
आज लगभग हर प्रतिष्ठित कैमरा कंपनी मिररलेस कैमरा बनाने और उसकी तकनीक को विकसित करने मे लगी है। मिररलेस टेक्नोलॉजी में Sony बाकी ब्रांडों की तुलना में अग्रणी रही है। अब बाजार में सोनी के अलावा Nikon, Canon, Fujifilm, Olympus आदि प्रमुख ब्रांड हैं।