फोटोग्राफी की विभिन्न विधाओं में वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी यानी ‘वन्यजीवन फोटोग्राफी’ बहुत ही चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरी होती है (‘जोखिम’ की जगह ‘रोमांच’ शब्द ज्यादा सही है)। फोटोग्राफी का कोई भी अन्य फील्ड इससे अधिक रोमांच और अनुभव देना वाला नहीं हो सकता। इसमें जंगल और खुली प्रकृति में रहने वाले जीव-जंतुओं के जीवन के विविध पहलुओं को फोटोग्राफ के माध्यम से दर्शाया जाता है। वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी एक उम्दा शौक होने के साथ-साथ पेशेवर स्तर पर फोटोग्राफी से धन और नाम कमाने का एक प्रतिष्ठित जरिया भी है।
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी (वन्यजीवन फोटोग्राफी)-An Introduction to Wildlife Photography in Hindi महत्वपूर्ण तथ्य
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी यानी वन्यजीवन फोटोग्राफी के लिए क्या जरूरी होता है?
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी (वन्यजीवन फोटोग्राफी) में सबसे जरूरी चीज है फोटोग्राफर का वन्यप्रेमी होना, यानी उसे जंगल और प्रकृति से गहरा लगाव होना चाहिए। जंगल के अंदर वन्य जीवों की अपनी एक दुनिया होती है। उस दुनिया की समझ रखने वाला और उससे प्यार करने वाला व्यक्ति ही एक बढ़िया वाइल्डलाइफ फोटोग्राफ हो सकता है। उसमें जीव-जंतुओं के व्यवहार को समझने की हुनर होनी चाहिए।
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के लिए खास प्रकार के उपकरणों की जरूरत पड़ती है। फास्ट शूटिंग स्पीड और बेहतरीन ऑटोफोकस वाले कैमरे तथा लंबे फोकल लेंथ वाले टेलीफोटो लेंस वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के लिए बेहद जरूरी हैं। कीटों और नन्हें जीवों के लिए माइक्रोलेंस जरूरी होते हैं। ये उपकरण कीमती होते हैं इसलिए वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी एक महंगा शौक है।
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी में जंगलों में विचरना होता है, खुली प्रकृति के बीच तमाम किस्म के जोखिमों और मुश्किल वेदर कंडीशन के बीच रहकर काम करना पड़ता है। इसलिए वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर को इन कठिनाइयों से जूझने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत और सहनशील होना चाहिए।
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का इतिहास
फोटोग्राफी के इतिहास में ‘वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी’ नामक पन्ना ऐसा भी नहीं है कि बहुत बाद में आकर जुड़ा हो। जॉर्ज ईस्टमैन ने 1888 ई. में पहला फिल्म कैमरा ‘Kodak’ अमेरिका के बाजार में उतारा था और इसके 18 साल बाद ही 1906 में पहली बार George Shiras III ने कैमरे का उपयोग अमेरिका के मिशिगन झील के आस-पास के जंगल के हिरणों की फोटोग्राफी के लिए किया गया।
George Shiras III को वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का जनक (Father of Wildlife Photography) कहा जाता है। George Shiras पेशे से वकील थे और अमेरिकी संसद में पेंसिल्वेनिया के सांसद भी रहे। उन्होंने उस जमाने में, जबकि फोटोग्राफी की दुनिया में कैमरा और लेंस तकनीक अपने पैरों पर ठीक से खड़ी भी नहीं हुई थी, वायर के जरिए कैमरा ट्रैप और फ्लैश की मदद से रात के अंधेरे में वन्य जीवों की तस्वीरें लीं। उनकी ये तस्वीरें दुनिया की पहली वाइल्डलाइफ तस्वीरें हैं।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी में अर्निंग के स्कोप
ऐसा नहीं है कि वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी केवल शौकिया किया जाए। पत्र-पत्रिकाओं में वन्यजीवन से जुड़े फोटोग्राफ्स और लेखों की मांग रहती है। पर्यावरण संरक्षण और वाइल्डलाइफ पर दुनिया भर में अनेक मैग्जीन निकलते हैं। इनके लिए फोटोग्राफी करके और फोटो-स्टोरी तैयार कर फोटोग्राफी के इस फील्ड से पैसे भी कमाए जा सकते हैं।
शिक्षा, प्रकाशन, कोर्स की किताबों, पर्यावरण संरक्षण पर काम करने वाली संस्थाओं में जानवरों, चिड़ियों, तितलियों, कीटों, सांप, समुद्री जीवों आदि की हाई-क्वालिटी तस्वीरों की मांग रहती है। इनके लिए फोटोग्राफी कर पैसे कमाए जा सकते हैं। वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के पेशेवर फील्ड में प्रायः फ्रीलांसर फोटोग्राफर्स होते हैं।
वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के विभिन्न फील्ड्स
प्रोफेशनल लेवल पर वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के भी अलग-अलग क्षेत्र हो जाते हैं। फोटोग्राफर्स को अपने विशिष्ट क्षेत्र में महारत हासिल करनी पड़ती है। एनिमल फोटोग्राफी, बर्ड फोटोग्राफी, माइक्रो फोटोग्राफी, रेप्टाइल्स फोटोग्राफी, बटरफ्लाई फोटोग्राफी, मरीन फोटोग्राफी, अंडरवाटर फोटोग्राफी आदि में से आप अपनी रुचि और पसंद के अनुसार किसी भी एक या अनेक फील्ड्स में काम कर सकते हैं।
प्रायः बर्ड फोटोग्राफी और बटरफ्लाई फोटोग्राफी जैसे फील्ड आसान और सुलभ होने की वजह से अधिक लोगों को लुभाते हैं। जबकि शेर, बाघ, स्नो लेपर्ड, सांप आदि की फोटोग्राफी के लिए अधिक हिम्मत, धैर्य और सूझ-बूझ चाहिए होती है। इनकी फोटोग्राफी तुलनात्मक रूप से अधिक खर्चीली भी होती है क्योंकि इन संरक्षित प्राणियों के लिए आपको अभयारण्य, नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व आदि में ऊंची फीस देकर सफारी की सुविधा लेनी पड़ती है और महंगे रिजॉर्ट में रुकना पड़ता है।
मरीन फोटोग्राफी और अंडरवाटर फोटोग्राफी इन सबमें सबसे कठिन और दुर्लभ है। इनके लिए पानी के अंदर काम करने वाले गियर चाहिए होते हैं। फोटोग्राफर्स को एक बढ़िया गोताखोर भी होना पड़ता है। भारत में धृतिमान मुखर्जी अंडरवाटर फोटोग्राफी करने वाले संभवतः एकमात्र भारतीय फोटोग्राफर हैं। उन्होंने हिमालय के स्नो-लेपर्ड पर भी दुर्लभ काम किए हैं।
वाइल्डलाइफ एथिक्स
बीते कुछ दशक में कैमरे और लेंस की तकनीक में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं और पहले की तुलना में उनकी कीमत भी कम हुई है। कुछ इस कारण से और कुछ जागरुकता बढ़ने से, आज वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी में शौकिया लोगों की भरमार है। दूसरों से बेहतर फोटो लेने की होड़ अकसर वन्य जीवों पर भारी पड़ती है। उनके Habitat (पर्यावास) में मनुष्य के दखल से उनके सहज जीवन पर असर पड़ता है।
इसलिए प्रकृति में आजाद विचरणे वाले प्राणियों की फोटो लेने के अपने कुछ नैतिक नियम होते हैं। ये नियम वाइल्डलाइफ एथिक्स कहलाते हैं। इनका पालन करना हर वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के लिए अनिवार्य होता है। वन्य प्राणियों की फोटोग्राफी इस तरह करनी चाहिए कि उनके स्वच्छंद विचरण में, उनके लाइफ एक्टिविटीज में किसी प्रकार की कोई बाधा न पड़े।
चिड़ियों के घोंसलों के पास जाना, सफारी के दौरान वन्य प्राणियों के रास्ते में रुकावट बनना, फोटो लेने के लिए किसी प्राणी को भगाना, उन्हें घेरना; उनके ऊपर फ्लैश चमकाना, रिकॉर्डेड आवाज से उन्हें लुभाना, भोजन सामग्री डालकर उन्हें पास बुलाना आदि वाइल्डलाइफ एथिक्स का उल्लंघन है। ऐसे काम कभी नहीं करने चाहिए।
भारत और दुनिया के कुछ चुनिंदा वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स
भारत और दुनिया के कुछ चुनिंदा वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स का नाम लिए बिना यह लेख अधूरा होगा। कल्याण वर्मा, रथिका रमास्वामी, धृतिमान मुखर्जी, शिवांग मेहता, संदेश कडूर इंडियन वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी के कुछ बड़े नाम हैं।
इसी तरह भारत से बाहर से- मार्टिन बेली (Martin Baily), जोन कॉर्नफोर्थ (Jon Cornforth), एनेट बोनियर (Annette Bonnier), एंडी राउस (Andy Rouse), मोर्केल इरैस्मस (Morkel Erasmus) कुछ चुनिंदा नाम हैं।
Sumit Singh
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